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जिज्ञासा विमर्श भाग-२ | Jijyansa Vimarsh Part-2

(in Gujarati) Second Hand Book

By Acharya Somdev Arya (आचार्य सोमदेव आर्य)

Original price was: ₹70.00.Current price is: ₹30.00.

ईश्वर संस्कृति दर्शन सभ्यता इतिहास धर्म { कैसे क्या  क्यों}= जिज्ञासा विमर्श

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ईश्वर संस्कृति दर्शन सभ्यता इतिहास धर्म { कैसे क्या  क्यों}= जिज्ञासा विमर्श

मनुष्य के मन में प्रश्नों का उठना मनुष्य की प्रगति का द्योतक है प्रश्नों का न उठना या तो सम्पूर्णता का लक्षण है या फिर बुद्धि को निष्क्रियता का लक्षण है। जब मनुष्य किसी भी नई वस्तु वा विषय सम्पर्क में आता है तो उसके मन में अनेक प्रश्न, जिज्ञासाएँ पैदा होते हैं, उनको शान्त करने पर वह अपने अन्दर ज्ञान की वृद्धि को हुआ पाता है। इस यथार्थ रूपी बढ़े हुए ज्ञान से मनुष्य के आनन्द में वृद्धि होती है।

जिस किसी वस्तु, विषय के बारे में मनुष्य जितना अधिक जानता है, वह उस वस्तु, विषय से व्यवहार भी उतना ही ठीक-ठीक कर पाता है। इसके विरुद्ध यदि है तो व्यवहार भी ठीक-ठीक नहीं कर पाता और ठीक व्यवहार के बिना सुख से वंचित रह दुःख उठाता है।

जिज्ञासा का समाधान होने पर व्यक्ति को आत्मिक सन्तुष्टि मिलती है। जिज्ञासा का समाधान प्रमाण पूर्वक हो तो और अधिक सन्तुष्टि का कारण बन जाता है।

‘परोपकारी’ पत्रिका में ‘जिज्ञासा समाधान’ नामक स्तम्भआर्यजगत् के सुयोग्य विद्वान्, सिद्धान्तों के मर्मज्ञ आदरणीय आचार्य सत्यजित् जी ने प्रारम्भ किया था। उनके द्वारा दिये गये समाधान पाठकों को तृप्ति प्रदान करते थे। जब आचार्य सत्यजित् जी ने अपनी व्यस्तता के कारण समाधान लिखना छोड़ा तब योगनिष्ठ तपस्वी विद्वान संन्यासी श्रद्धेय स्वामी विष्वङ् जी परिव्राजक ने मुझे लिखने के लिए कहा और मैंने लिखना प्रारम्भ किया। उन्हीं लिखे हुए लेखों को संकलित कर स्वामी विष्वङ् जी की प्रेरणा से ‘जिज्ञासा विमर्श’ नामक पुस्तक छपी। पुस्तक को पाठकों ने स्वागतपूर्वक स्वीकार किया। अब प्रथम पुस्तक से बचे हुए लेखों का संग्रह दूसरी पुस्तक ‘जिज्ञासा विमर्श’ भाग दो में किया है।

 

इस पुस्तक में विषय उसी प्रकार हैं, कुछ विषय बढ़ गये हैं। भाग दो पुस्तक में कुछ समाधान प्रथम भाग के जैसे मिलेंगे, इसको पुनरूक्ति रूप में न देख विषय की आवश्यकता को ध्यान में रखकर पढ़ेंगे तो पाठकों को अधिक अच्छा लगेगा, ऐसा मैं अनुभव करता हूँ।

मैंने जो समाधान लिखने का प्रयास किया है, उसमें महर्षि दयानन्द को मुख्य आधार मानकर किया है, क्योंकि महर्षि दयानन्द अन्य ऋषि-महर्षियों के प्रतिनिधि हैं। समाधान वेद व ऋषि अनुकूल हों तो वह समाधान है अन्यथा वह निजी विचार मात्र बनकर रह जाता है। आर्य समाज ओर महर्ष दयान दजी के प्रति मेरी जो विशेष निष्ठा बनी उसमें श्री आचार्य सत्यव्रत जी पूर्व आचार्य गुरुकुल सुन्दरपुर (रोहतक) की विशेष प्रेरणा रही हैं। इसके लिए में आचार्यश्री सत्यव्रत जी का हृदय से सदा कृतज रहूंगा।

‘जिज्ञासा विमर्श-२’ पुस्तक को प्रकाशित करते हुए प्रसन्नता हो रही है। परमेश्वर की असीम कृपा से ही उत्तम कार्य हुआ करते हैं और यह उत्तम कार्य प्रभु की कृपा से सम्पन्न हुआ, तदर्थ परमेश्वर के प्रति कोटिशः नमन। पुस्तक का प्रकाशन वानप्रस्थ साधक आश्रम रोजड़ से हुआ, इस कारण आश्रम के अध्यक्ष आचार्य श्री सत्यजित् जी व अन्य आश्रम के सदस्यों का धन्यवाद। पुस्तक प्रकाशन में आर्थिक सहयोग अनिवार्य होता है और वह सहयोग साहित्य प्रकाशन में रुचि रखने वाले देवनगर (महेन्द्रगढ़) के उदारमना श्री महेन्द्र जी, अहमदाबाद से बन्धु द्वय श्री चिन्तन रामी जी व श्री श्रेयांस रामी जी का रहा है, एतदर्थ इन दानशील महानुभावों का हृदय से धन्यवाद। पुस्तक का रूपाँकन श्री कमलेश पुरोहित जी, अजमेर ने किया, इनका भी धन्यवाद। समाधान लिखने में जिन भी विद्वानों, लेखकों का सहयोग मिला, उन सभी का हृदय से धन्यवाद। पाठक पुस्तक को प्राप्त कर अवश्य ज्ञानवर्धन करेंगे इसी आशा के साथ…।

Weight 300 g
Dimensions 13.5 × 21 cm
Binding

Paperback

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